[ आठ ]
रामजियावन बाँच रहे हैं
रामचरित मानस।
"होइहैं सो
जो राम रचि राखा
को करि तरक बढावहिं साखा"
बचपन से
पचपन तक पहुँचे
रटी यही जीवन परिभाषा
आँख खुली
तो नथने फूले
फड़क रही नस-नस
"ढोल-गवाँर-
सूद्र-पसु-नारी
सकल ताड़ना के अधिकारी"
राजतंत्र से
लोकतंत्र तक
उक्ति शोषितों पर यह भारी
तीर वही हैं
वही निशाने
बदला है तरकश।
"राम-कथा
सुंदर करतारी
संसय-विंहग उडावन हारी"
कलजुग में
त्रेता की गाथा
कितनी सच है, हे त्रिपुरारी
संशय के
इस मकड़जाल में
जकड़ रहे बरबस।
-शैलेन्द्र शर्मा
रामजियावन बाँच रहे हैं
रामचरित मानस।
"होइहैं सो
जो राम रचि राखा
को करि तरक बढावहिं साखा"
बचपन से
पचपन तक पहुँचे
रटी यही जीवन परिभाषा
आँख खुली
तो नथने फूले
फड़क रही नस-नस
"ढोल-गवाँर-
सूद्र-पसु-नारी
सकल ताड़ना के अधिकारी"
राजतंत्र से
लोकतंत्र तक
उक्ति शोषितों पर यह भारी
तीर वही हैं
वही निशाने
बदला है तरकश।
"राम-कथा
सुंदर करतारी
संसय-विंहग उडावन हारी"
कलजुग में
त्रेता की गाथा
कितनी सच है, हे त्रिपुरारी
संशय के
इस मकड़जाल में
जकड़ रहे बरबस।
-शैलेन्द्र शर्मा
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