[ तीन ]
औरों की भर रहे तिजोरी
अपने घर के लोग।
सच कहना तो ठीक
मगर इतना सच नहीं कहो
जैसे सहती रही पीढ़ियाँ
तुम भी वही सहो
आज़ादी है, बोलो
लेकिन"कुछ भी"मत बोलो
जनता के मन में
सच्चाई का विष मत घोलो
नियति-नटी कर रही सदा से
ऐसे अज़ब प्रयोग।
राजा चुप
रानी भी चुप है
चुप सारे प्यादे
सिसक रहे सब
सैंतालिस से पहले के वादे
घर का कितना माल-ख़जाना
बाहर चला गया
बहता हुआ पसीना
फिर इत्रों से छला गया
जो बोला, लग गया उसी पर
एक नया अभियोग।
सहम गई है हवा
लग रहा आँधी आयेगी
अंहकार के छानी-छप्पर
ले उड़ जायेगी
भोला राजा रहा ऊँघता
जनता बेचारी
सभासदों ने
कदम-कदम पर की है मक्कारी
कोई अनहद उठे
कहीं से, हो ऐसा संयोग।
-डा० जगदीश व्योम
औरों की भर रहे तिजोरी
अपने घर के लोग।
सच कहना तो ठीक
मगर इतना सच नहीं कहो
जैसे सहती रही पीढ़ियाँ
तुम भी वही सहो
आज़ादी है, बोलो
लेकिन"कुछ भी"मत बोलो
जनता के मन में
सच्चाई का विष मत घोलो
नियति-नटी कर रही सदा से
ऐसे अज़ब प्रयोग।
राजा चुप
रानी भी चुप है
चुप सारे प्यादे
सिसक रहे सब
सैंतालिस से पहले के वादे
घर का कितना माल-ख़जाना
बाहर चला गया
बहता हुआ पसीना
फिर इत्रों से छला गया
जो बोला, लग गया उसी पर
एक नया अभियोग।
सहम गई है हवा
लग रहा आँधी आयेगी
अंहकार के छानी-छप्पर
ले उड़ जायेगी
भोला राजा रहा ऊँघता
जनता बेचारी
सभासदों ने
कदम-कदम पर की है मक्कारी
कोई अनहद उठे
कहीं से, हो ऐसा संयोग।
-डा० जगदीश व्योम
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