-डा० विनय भदौरिया
प्यारी निमिया
बप्पा जैसे
आम लगे
हमें गाँव की
सोंधी-सोंधी, माटी
चारों धाम लगे
ठन्डी छाँव बाँटते
हरदम, पुरखों से
बरगद दादा
हरी-भरी आँगन की
तुलसी, दादी-
घर की मर्यादा
निर्विकार
पीपल का बिरवा
ज्यों अवतारी राम लगे
हैं टीले -पहाड़ से
भाई, नदियाँ
इठलाती भौजी
मीठी टाफी
बाँट रहे हैं
महुआ काका मनमौजी
गाय चराते
बाल-बृन्द सब
गोकुल के घनश्याम लगे
-डा० विनय भदौरिया
1 comment:
बहुत ही शानदार आदरणीय
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