-डॉ० सुभाष वसिष्ठ
यह उम्र गंधाती
टूटकर भी
सही को
लिखता रहूँ पाती
मैं नहीं हूँ
बड़े नामों के चरण का
रँग महावर
या कि
ज़िन्दा लाश को
ढोती हुई लच-भीरु काँवर
या कि
हरदम छोड़
उगते सूर्य का साथी
चौंधियाती
रोशनी के पार
लिजलिज-सी गलाज़त
मुस्करा कर
श्वेत मन को
जबह करने की इजाज़त
सभी को है
साफ उत्तर-
सान-धर दाँती
-डॉ० सुभाष वसिष्ठ
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सानधर दाँती
प्रस्तुत गीत गीतकार प्रत्येक परिस्थितियों में गंध / मूल आधार को सुरक्षित रखने और सही व्यक्ति / भावना / विचार का सन्देश देने की सोद्देश्य अभिव्यंजना करता हैं | वह न तो तथा कथित बड़े व्यक्तियों की चाटुकारिता का पक्षधर है और ना ही उनके लिए अपने अच्छे और सही साथियों को छोड़ने का पक्षधर है | गीतकार चुँधियाते प्रकाश के पीछे की-
“ लिजलिज – सी गलाजत ”
से परिचित है क्योंकि वह जनता है की ऐसे व्यक्तियों का गुरुडम “ स्वेत मन को जवह करने ” के लिए होता है | इसीलिए, इस प्रष्ठ भूमि में गीतकार कहता है – “ सभी को है साफ़ उत्तर सानधर दाँती ” जो गीतकार के सही के लिए गलत के प्रतिरोध का सूचक है |
डॉ. सुभाष वसिष्ठ के सभी नवगीत उच्चस्तरीय और पुष्ट हैं | उन्हें शत-शत वधाई तथा निरन्तर अच्छे नवगीत लिखते रहने के लिए मंगलकामनाएं –
डॉ. गिरीश
मथुरा
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