-संध्या सिंह
गहन उदासी के आँगन को
उत्सव दिखना था
बालू के पन्ने पर हमको
दरिया लिखना था
पथरीला सच पाँव तले था
मिट्टी के सपने सर पर
द्वेष ईर्ष्या के गड्ढों से
भरसक चले सदा बच कर
मगर जहाँ पर मिली ढलाने
रस्ता चिकना था
पंखों की सब रद्द उड़ाने
कुहरे का परिवेश मिला
बूँदों को काजल की हद में
रहने का आदेश मिला
घूम-घूम कर एक नोक पर
लट्टू टिकना था
-संध्या सिंह
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