-चित्रांश वाघमारे
गीत की गरिमा बचाओ,
भूख से टूटी कलम ने
छंद गिरवी रख दिए है ॥
है कहाँ अवकाश अब
कवि क्यों समय से द्वंद्व ठाने,
ढूँढ़ते है अब सभी जन –
कोष भरने के बहाने ।
बुझने लगे है वे दिए जो
पूर्व में बाले हुए है,
और हमने पूर्व के –
अनुबंध गिरवी रख दिए है ॥
अब निराला भी नहीं है
है नहीं दिनकर कही पर,
मंद पड़ती काव्यधारा –
ढल रहे है कोकिला स्वर ।
झरने लगे है पुष्प सारे
वाटिका मिटने लगी है,
और हमने पूर्व के –
मकरंद गिरवी रख दिए है ॥
शब्द बोझिल अर्थवाली
उलझनों में खो गए है,
शब्द है बोझिल यहाँ या –
अर्थ बोझिल हो गए है ?
अर्थ छीने, भाव छीने
शब्द से पर्याय छीने,
मूल्य देकर शोक का –
आनंद गिरवी रख दिए है ॥
-चित्रांश वाघमारे
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