-चित्रांश वाघमारे
नटनी सी , पतली रस्सी पर
चलती रहती मेरी माँ ॥
उसको ध्यान रहा करता है
छोटी छोटी बातों का,
उसमे बसता है सोंधापन
सारे रिश्ते नातों का ।
बुआ ,बहन, भौजाई सब में-
ढलती रहती मेरी माँ ॥
मिसरी बनकर वही घुली है
खारी सी तकरारों में,
भरती अपनेपन की मिट्टी
उभरी हुई दरारों में ।
घर भर के घावों पर मरहम
मलती रहती मेरी माँ ॥
आँचल के बरगद के नीचे
तपती धूप नहीं आती,
सारे जगभर की शीतलता
माँ की गोदी की थाती ।
झीने से आँचल से पंखा
झलती रहती मेरी माँ ॥
आशय बदल रहे है अपने
सचमुच नेकी और बदी,
सच्ची बाते झुठलाती है
ऐसी अंधी हुई सदी ।
जग के झूठेपन में सच्ची
लगती रहती मेरी माँ ॥
सुनती है माँ, नई हवा के
चाल चलन कुछ ठीक नहीं,
जिस पर बढ़ते पाँव समय के
कोई अच्छी लीक नहीं ।
सोता है संसार रात-भर-
जगती रहती मेरी माँ ॥
बसती है मेरी माँ, मेरी -
अपनी हँसी-ठिठोली में,
चौखट के वंदनवारों में
आँगन की रंगोली में ।
आँगन के दीये सी दिप-दिप
जलती रहती मेरी माँ ॥
-चित्रांश वाघमारे
1 comment:
बहुत अच्छी रचनाएँ हैं
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