[एक]
पुरखा पथ से
पहिये रथ के
मोड़ रहा है गाँव
पूरे घर में
ईंटे पत्थर
धीरे-धीरे
छानी-छप्पर
जोड़ रहा है गाँव
ढीले होते
कसते-कसते
पक्के घर में
कच्चे रिश्ते
जोड़ रहा है गाँव
इसको उससे
उसको इससे
और न जाने
किसको किससे
तोड़ रहा है गाँव
गर्मी हो बरखा हो
या जाड़ा
सबके आँगन
एक अखाड़ा
खोद रहा है गाँव
-डॉ शिवबहादुर सिंह भदौरिया
पुरखा पथ से
पहिये रथ के
मोड़ रहा है गाँव
पूरे घर में
ईंटे पत्थर
धीरे-धीरे
छानी-छप्पर
जोड़ रहा है गाँव
ढीले होते
कसते-कसते
पक्के घर में
कच्चे रिश्ते
जोड़ रहा है गाँव
इसको उससे
उसको इससे
और न जाने
किसको किससे
तोड़ रहा है गाँव
गर्मी हो बरखा हो
या जाड़ा
सबके आँगन
एक अखाड़ा
खोद रहा है गाँव
No comments:
Post a Comment