[ दो ]
मुँह में तो है राम-राम
पर लिये बगल में छूरी हैं
राम भरोसे के खातिर
कुछ टोटके बहुत जरुरी हैं।
रंग बिरंगे सपने उनके
कलफ़ चढ़ी पोशाकें हैं
मगर सैकड़ों साँप उन्हीं के
अस्तीनों से झाँके हैं
फ्रेम जड़े गाँधी भी चुप हैं
यह कैसी मजबूरी है।
संसद तो खो गई बहस में
चौपालें अफवाहों में
दिल्ली खोने को आतुर है
गोरी-गोरी बाँहों में
जन-गण-मन
अधिनायक वाली
यह तस्वीर अधूरी है।
खैनी-बीड़ी पर कटती है
कैसे सारी रात यहाँ
चटखारों के बीच भुखमरी
पर होती है बात वहाँ
ढाई कोस चले नौ दिन में
पड़ी समूची दूरी है।
-डा० रविशंकर पाण्डेय
मुँह में तो है राम-राम
पर लिये बगल में छूरी हैं
राम भरोसे के खातिर
कुछ टोटके बहुत जरुरी हैं।
रंग बिरंगे सपने उनके
कलफ़ चढ़ी पोशाकें हैं
मगर सैकड़ों साँप उन्हीं के
अस्तीनों से झाँके हैं
फ्रेम जड़े गाँधी भी चुप हैं
यह कैसी मजबूरी है।
संसद तो खो गई बहस में
चौपालें अफवाहों में
दिल्ली खोने को आतुर है
गोरी-गोरी बाँहों में
जन-गण-मन
अधिनायक वाली
यह तस्वीर अधूरी है।
खैनी-बीड़ी पर कटती है
कैसे सारी रात यहाँ
चटखारों के बीच भुखमरी
पर होती है बात वहाँ
ढाई कोस चले नौ दिन में
पड़ी समूची दूरी है।
-डा० रविशंकर पाण्डेय
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