[ आठ ]
बिना तुम्हारी
छवि को देखे,
मुझसे नहीं रहा जाता है
केवल प्राण बना देने से
काम अगर
चल जाता विधि का
तो करता क्यों
सृजन बताओं इतनी
अनुपम
तन की निधि का
कोई कहे
रूप को माटी
मुझसे नहीं कहा जाता है
मेरे तन,मन,प्राण
एक है मैं
न कर
सकूँगा बँटवारा
जिससे भी सम्भव
होता हो
बड़ी खूशी से
करे किनारा
बिन जल की
नदिया में मुझसे,
बिलकुल नहीं बहा जाता है
है ज़रूर
प्राणों औ छवि में
समझौता
कोई आपस में
एक बार जो
रूप निहारे रह न
जाये फिर अपने बस में
जिन बाहों से
गहा गुणी को,
निर्गुण नहीं गहा जाता है
छवि को देखे,
मुझसे नहीं रहा जाता है
केवल प्राण बना देने से
काम अगर
चल जाता विधि का
तो करता क्यों
सृजन बताओं इतनी
अनुपम
तन की निधि का
कोई कहे
रूप को माटी
मुझसे नहीं कहा जाता है
मेरे तन,मन,प्राण
एक है मैं
न कर
सकूँगा बँटवारा
जिससे भी सम्भव
होता हो
बड़ी खूशी से
करे किनारा
बिन जल की
नदिया में मुझसे,
बिलकुल नहीं बहा जाता है
है ज़रूर
प्राणों औ छवि में
समझौता
कोई आपस में
एक बार जो
रूप निहारे रह न
जाये फिर अपने बस में
जिन बाहों से
गहा गुणी को,
निर्गुण नहीं गहा जाता है
-डॉ.शिवबहादुर सिंह भदौरिया
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