-बृजनाथ श्रीवास्तव
वृन्दावन मेंरहना है तो
राधे-राधे बोल भगत
मंदिर-मंदिर
घाट-घाट पर
पंडों की है भीड़
तुम घर बाहर
छोड़कर आये
यहाँ बसाने नीड़
माया मंदिर
की करतूतें
चुपके-चुपके तोल भगत
अपने-अपने
सबके हित हैं
अपने-अपने राग
छोड़ गोपिका
संग कन्हाई
कौन खेलता फाग
यहाँ पुजारी
और देव के
अपने-अपने मोल भगत
मुँह मत खोलो
कुछ न सुनों तुम
रखो बन्द कर आँख
बहुत जानने की
कोशिश में
गिर जाएगी साख
ज्ञान चक्षु की
बन्द खिड़कियाँ
धीरे-धीरे खोल भगत
-बृजनाथ श्रीवास्तव
[नवगीत संग्रह "रथ इधर मोड़िये" से]
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