Sunday, August 05, 2018

सुनो कविवर

सुनो कविवर
है नहीं ये समय
शब्दों की जुगाली का

उठो! अपनी आग को
ज़िन्दा करो
फिर से सहेजो
जगाओ वे स्वप्न
केवल स्वप्न मेंंबर अब तक
रहे जो
खा न जाना मात
रखना ध्यान-
मौसम की दलाली का

जानते हो, किस कदर है
अब
चमन का हाल बेढब ?
रंग, खुशबू, फूल
कलियाँ
जी रहे हैं दहशतें सब
गिर गया ईमान
गिरने की हदों तक
आज माली का

उड़ाओ बेखौफ
हर जुल्मो सितम की
धज्जियाँ
नोक पर अब
कलम के
किंचित जड़ो मत चुप्पियाँ
अन्यथा फिर
भोगना परिणाम
इस हीला-हवाली का

-जय चक्रवर्ती

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