Sunday, August 05, 2018

पहली पहली बार

पहली-पहली बार
गुलाबो
मैके आई है
भरी-भरी है
देह सुहागिन
भरी कलाई है

घर-आँगन
दालाने-देहरी
छत-सीढ़ी गलियारे
उजियारे में
बदल गए हैं
कोनों के अँधियारे
घर के जैसे
रोम-रोम में
पुलक समाई है

चमक उठे
खिड़की-दरवाजे
रैक किताबें
बस्ते
बरसों पर घर
आये जैसे
नए-नए गुलदस्त
सीधी चितवन
छाँह प्यार की
छुवन मिठाई है

ऐसी वैसी
खट्टी-मीठी
बातें हैं बहुतेरी
बतियाने में
हँसी फूटती
केक में जैसे चेरी
सँग-सँग हरदम
हाथ का दर्पण
छोटा भाई है

बचपन के
एल्बम में खोई
अगवारे-पिछवारे
अमराई ही
अमराई में
चिड़िया पंख पसारे
सरसों लदी
कियारी फागुन-
धूप नहाई है

-कैलाश गौतम

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