[ पांच ]
ज़र्ज़र लेकिन
रंगी-पुती है
चौखम्भे पर टिकी इमारत।
चारों खम्भे हैं
बड़बोले
चारों के चारों अलबेले
अपने-अपने
गाल बजाकर
फेंक रहे औरों पर ढेले
देखो,
इनके चेहरे देखो
समय आ गया पढ़ो इबारत।
हर खम्भे का
सीना चौडा
दरपन से अपना मुँह मोड़ा
अलग-अलग
व्यौरा है सबका
झूठा ज्यादा सच्चा थोड़ा
क़दमताल पर
चलना था, पर
अपनी-अपनी करें क़वायद।
जब जी चाहे
रंग बदल दें
जब जी चाहे ढंग बदल दें
खुद चेहरे पर
लगा मुखौटा
जिस पर चाहें कालिख
मल दें
राम भरोसे
देख रहे हैं
लोकतंत्र की यही रवायत।
-शैलेन्द्र शर्मा
ज़र्ज़र लेकिन
रंगी-पुती है
चौखम्भे पर टिकी इमारत।
चारों खम्भे हैं
बड़बोले
चारों के चारों अलबेले
अपने-अपने
गाल बजाकर
फेंक रहे औरों पर ढेले
देखो,
इनके चेहरे देखो
समय आ गया पढ़ो इबारत।
हर खम्भे का
सीना चौडा
दरपन से अपना मुँह मोड़ा
अलग-अलग
व्यौरा है सबका
झूठा ज्यादा सच्चा थोड़ा
क़दमताल पर
चलना था, पर
अपनी-अपनी करें क़वायद।
जब जी चाहे
रंग बदल दें
जब जी चाहे ढंग बदल दें
खुद चेहरे पर
लगा मुखौटा
जिस पर चाहें कालिख
मल दें
राम भरोसे
देख रहे हैं
लोकतंत्र की यही रवायत।
-शैलेन्द्र शर्मा
No comments:
Post a Comment