[ सात ]
ऊँची-ऊँची मीनारों में
बौने-बौने घर
तन तो छत के
नीचे रहता
मन भटके दर-दर।
बाहर से दिखते हैं जैसे
कोई राजमहल
पर भीतर के सन्नाटे से
जी है रहा दहल
घर में रहते हुए सैकडों
रहते हैं बे-घर।
वैसे तो सारी सुविधायें
हैं मीनारों में
लेकिन तंगी रहती है
घर-घर दीवारों में
जीवन सहज
नहीं फ़िर भी कुछ
उड़ते हैं बे-पर।
'ऊँच निवास
नीच करतूती'
दिखती है अक्सर
गुरबत रह-रह
जिसके आगे
पकडे अपना सर
मानवता
पर हावी पशुता-के
चुभते नश्तर।
-शैलेन्द्र शर्मा
ऊँची-ऊँची मीनारों में
बौने-बौने घर
तन तो छत के
नीचे रहता
मन भटके दर-दर।
बाहर से दिखते हैं जैसे
कोई राजमहल
पर भीतर के सन्नाटे से
जी है रहा दहल
घर में रहते हुए सैकडों
रहते हैं बे-घर।
वैसे तो सारी सुविधायें
हैं मीनारों में
लेकिन तंगी रहती है
घर-घर दीवारों में
जीवन सहज
नहीं फ़िर भी कुछ
उड़ते हैं बे-पर।
'ऊँच निवास
नीच करतूती'
दिखती है अक्सर
गुरबत रह-रह
जिसके आगे
पकडे अपना सर
मानवता
पर हावी पशुता-के
चुभते नश्तर।
-शैलेन्द्र शर्मा
2 comments:
अद्भुत गीत
अद्भुत गीत
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